Translate

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

वैवाहिक जीवन में आने वाले सुख-दुःख और समाधान :-

वैवाहिक जीवन में आने वाले सुख-दुःख और समाधान :- 
यह मनुष्य को परमात्मा का एक वरदान है। कहते हैं, जोड़ियां परमात्मा द्वारा पहले से ही तय होती हैं। पूर्व जन्म में किए गए पाप एवं पुण्य कर्मों के अनुसार ही जीवन साथी मिलता है और उन्हीं के अनुरूप वैवाहिक जीवन दुखमय या सुखमय होता है।
कुंडली में विवाह का विचार मुखयतः सप्तम भाव से ही किया जाता है। इस भाव से विवाह के अलावा वैवाहिक या दाम्पत्य जीवन के सुख-दुख, जीवन साथी अर्थात पति एवं पत्नी, काम (भोग विलास), विवाह से पूर्व एवं पश्चात यौन संबंध, साझेदारी आदि का विचार किया जाता है। 
samsya ka samadhan



यदि कोई भाव, उसका स्वामी तथा उसका कारक पाप ग्रहों के मध्य में स्थित हों, प्रबल पापी ग्रहों से युक्त हों, निर्बल हों, शुभग्रह न उनसे युत हों न उन्हें देखते हों, इन तीनों से नवम, चतुर्थ, अष्टम, पंचम तथा द्वादश स्थानों में पाप ग्रह हों, भाव नवांश, भावेश नवांश तथा भाव कारक नवांश के स्वामी भी शत्रु राशि में, नीच राशि में अस्त अथवा युद्ध में पराजित हों तो उस भाव से संबंधित वस्तुओं की हानि होती है। 

वैवाहिक जीवन के अशुभ योग :- 
यदि सप्तमेश शुभ युक्त न होकर षष्ठ, अष्टम या द्वादश भावस्थ हो और नीच या अस्त हो, तो जातक या जातका के विवाह में बाधा आती है। 
यदि षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश सप्तम भाव में विराजमान हो, उस पर किसी ग्रह की शुभ दृष्टि न हो या किसी ग्रह से उसका शुभ योग न हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा आती है। 
सप्तम भाव में क्रूर ग्रह हो, सप्तमेश पर क्रूर ग्रह की दृष्टि हो तथा द्वादश भाव में भी क्रूर ग्रह हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा आती है।
सप्तमेश व कारक शुक्र बलवान हो, तो जातक को वियोग दुख भोगना पड़ता है।
यदि शुक्र सप्तमेश हो (मेष या वृश्चिक लग्न) और पाप ग्रहों के साथ अथवा उनसे दृष्ट हो, या शुक्र नीच व शत्रु नवांश का या षष्ठांश में हो, तो जातक स्त्री कठोर चित्त वाली, कुमार्गगामिनी और कुलटा होती है। फलतः उसका वैवाहिक जीवन नारकीय हो जाता है।
यदि शनि सप्तमेश हो, पाप ग्रहों क साथ व नीच नवांश में हो अथवा नीच राशिस्थ हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो, तो जीवन साथी के दुष्ट स्वभाव के कारण वैवाहिक जीवन क्लेशमय होता है।
राहु अथवा केतु सप्तम भाव में हो व उसकी क्रूर ग्रहों से युति बनती हो या उस पर पाप दृष्टि हो, तो वैवाहिक जीवन अक्सर तनावपूर्ण रहता है। 
यदि सप्तमेश निर्बल हो और भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तथा कारक शुक्र कमजोर हो, तो जीवन साथी की निम्न सोच के कारण वैवाहिक जीवन क्लेशमय रहता है। 
सूर्य लग्न में व स्वगृही शनि सप्तम भाव में विराजमान हो, तो विवाह में बाधा आती आती है या विवाह विलंब से होता है।
सप्तमेश वक्री हो व शनि की दृष्टि सप्तमेश व सप्तम भाव पर पड़ती हो, तो विवाह में विलंब होता है। सप्तम भाव व सप्तमेश पाप कर्तरी योग में हो, तो विवाह में बाधा आती है। शुक्र शत्रुराशि में स्थित हो और सप्तमेश निर्बल हो, तो विवाह विलंब से होता है। 
शनि सूर्य या चंद्र से युत या दृष्ट हो, लग्न या सप्तम भाव में स्थित हो, सप्तमेश कमजोर हो, तो विवाह में बाधा आती है। शुक्र कर्क या सिंह राशि में स्थित होकर सूर्य और चंद्र के मध्य हो और शनि की दृष्टि शुक्र पर हो, तो विवाह नहीं होता है।
शनि की सूर्य या चंद्र पर दृष्टि हो, शुक्र शनि की राशि या नक्षत्र में में हो और लग्नेश तथा सप्तमेश निर्बल हों, तो विवाह में बाधा निश्चित रूप से आती है। वैवाहिक जीवन में क्लेश सप्तम भाव, सप्तमेश और द्वितीय भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव वैवाहिक जीवन में क्लेश उत्पन्न करता है। 

लग्न, सप्तम भाव, सप्तमेश की कारक शुक्र, राहु, केतु या मंगल से दृष्टि या युति के फलस्वरूप दाम्पत्य जीवन में क्लेश पैदा होता है। 
यदि जातक व जातका का कुंडली मिलान (अष्टकूट) सही न हो, तो दाम्पत्य जीवन में वैचारिक मतभेद रहता है। यदि जातक व जातका की राशियों में षडाष्टक भकूट दोष हो, तो दोनों के जीवन में शत्रुता, विवाद, कलह अक्सर होते रहते हैं। यदि जातक व जातका के मध्य द्विर्द्वादश भकूट दोष हो, तो खर्चे व दोनों परिवारों में वैमनस्यता आती है जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य क्लेश रहता है। यदि पति-पत्नी के ग्रहों में मित्रता न हो, तो दोनों के बीच वैचारिक मतभेद रहता है। जैसे यदि ज्ञान, धर्म, रीति-रिवाज, परंपराओं, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान के कारक गुरु तथा सौंदर्य, भौतिकता और ऐंद्रिय सुख के कारक शुक्र के जातक और जातका की मानसिकता, सोच और जीवन शैली बिल्कुल विपरीत होती है। 

पति-पत्नी के गुणों (अर्थात स्वभाव) में मिलान सही न होने पर आपसी तनाव की संभावना बनती है। अर्थात पति-पत्नी के मध्य अष्टकूट मिलान बहुत महत्वपूर्ण है, जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार कर लेना चाहिए। मंगल दोष भी पति-पत्नी के मध्य तनाव का कारक होता है। 

स्वभाव से गर्म व क्रूर मंगल यदि प्रथम (अपना), द्वितीय (कुटुंब, पत्नी या पति की आयु), चतुर्थ (सुख व मन), सप्तम (पति या पत्नी, जननेंद्रिय और दाम्पत्य), अष्टम (पति या पत्नी का परिवार और आयु) या द्वादश (शय्या सुख, भोगविलास, खर्च का भाव) भाव में स्थित हो या उस पर दृष्टि प्रभाव से क्रूरता या गर्म प्रभाव डाले, तो पति-पत्नी के मध्य मनमुटाव, क्लेश, तनाव आदि की स्थिति पैदा होती है। 

राहु, सूर्य, शनि व द्वादशेश पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य) और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं। दृष्टि या युति संबंध से जितना ही विपरीत या शुभ प्रभाव होगा उसी के अनुरूप वैवाहिक जीवन सुखमय या दुखमय होगा। द्वितीय भाव में सूर्य के सप्तम, सप्तमेश, द्वादश और द्वादशेश पर (राहु पृथकतावादी ग्रह) प्रभाव से दाम्पत्य जीवन में क्लेश की, यहां तक कि तलाक की नौबत आ जाती है।

मानव और जानवर में आहार, निद्रा, भय एवं मैथुन ये चार प्रवृत्तियां समान रूप से विद्यमान रहती हैं। किंतु मैथुन का महत्व आज के युग में अत्यधिक है। हमारे द्रष्टा ऋषियों ने नक्षत्रों का वर्गीकरण लिंग के आधार पर किया है। कन्या हो या वर, जिस नक्षत्र में पैदा होता है, उस नक्षत्र का प्रभाव उस पर पड़ता है। उसका मैथुन स्वभाव तत्संबंधित योनि के अनुरूप होता है। 
कुंडली मेलापन के समय यदि इस बात पर विचार किया जाए, तो निश्चय ही दोनों का शारीरिक संबंध संतोषजनक रहेगा अन्यथा वैवाहिक जीवन में कटुता पैदा होगी। विवाह हेतु मेलापक में योनिकूट का अपना विशेष महत्व है। जिन वर और कन्या के योनिकूट पर ध्यान नहीं दिया जाता, उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है। दूसरी तरफ, जिनकी कुंडली मिलान में योनिकूट पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाता है, उनका वैवाहिक जीवन आनंदमय रहता है। इस यूरेनियम युग में शुक्र अति शक्तिशाली हो रहा है। इससे भविष्य में सेक्स की प्रधानता रहेगी। ऐसे में योनिकूट का महत्व और अधिक बढ़ गया है, जिस पर ध्यान देना ही चाहिए, ताकि तलाक की स्थिति से बचा जा सके। इसी में नवदम्पति का कल्याण है। 

अनुभूत उपाय : यदि कुंडली में वैधव्य योग हो, तो शादी से पहले घट विवाह, अश्वत्थ विवाह, विष्णु प्रतिमा या शालिग्राम विवाह विवाह कराना तथा प्रभु शरण में रहना चाहिए। 

लाल किताब के योग एवं उपाय:- 
शुक्र एवं राहु की किसी भी भाव में युति वैवाहिक जीवन के लिए दुखदायी होती है। 
यह युति पहले भाव 4 या 7 में हो, तो पति-पत्नी में तलाक की नौबत आ जाती है या अकाल मृत्यु की संभावना रहती है।
उपाय यदि ऐसा विवाह हो चुका हो, तो चांदी के गोल वर्तन में काजल या बहते दरिया का पानी और शुद्ध चांदी का टुकड़ा डालकर किसी धर्मस्थान में देना चाहिए। साथ ही एक चांदी के बर्तन में गंगाजल या किसी अन्य बहते दरिया का पानी और चांदी का टुकड़ा डालकर अपने पास रखना चाहिए। 
यह उपाय विवाह से पूर्व या बाद में कर सकते हैं। 
यदि सातवें भाव में राहु हो, तो विवाह के संकल्प के समय बेटी वाला चांदी का एक टुकड़ा बेटी को दे। इससे बेटी के दाम्पत्य जीवन में क्लेश की संभावना कम रहती है। 
यह उपाय लग्न में राहु रहने पर भी कर सकते हैं, क्योंकि इस समय राहु की दृष्टि सातवें भाव पर होती है।
यदि भाव 1 या 7 में राहु अकेला या शुक्र के साथ हो, तो 21 वें वर्ष या इससे पूर्व विवाह होने पर वैवाहिक जीवन दुखमय होता है। अतः उपाय के तौर पर विवाह 21 वर्ष के पश्चात ही कुंडली मिलान करके करें।
सूर्य और बुध के साथ शुक्र की युति किसी भी भाव में होने पर वैवाहिक जीवन में कुछ न कुछ दोष अवश्य ही उत्पन्न होता है, जिससे दाम्पत्य जीवन दुखमय रहता है। 
उपाय तांबे के एक लोटे में साबुत मूंग भरकर विवाह के संकल्प के समय हाथ लगाकर रखना चाहिए और इसे जल में प्रवाहित करना चाहिए। 
यदि यह उपाय विवाह के समय न हो सके, तो जिस वर्ष उक्त तीनों ग्रह लाल किताब के वर्षफलानुसार आठवें भाव में आएं, उस वर्ष कर सकते हैं। 
शुक्र यदि आठवें भाव में हो, तो जातक की पत्नी सखत स्वभाव की होती है, जिससे आपसी सामंजस्य का अभाव रहता है। 
इस योग की स्थिति में विवाह 25 वर्ष की उम्र के बाद ही करना चाहिए। इसके पहले विवाह करने पर पत्नी के स्वास्थ्य के साथ-साथ गृहस्थ सुख पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। 
उपाय आठवें भाव में स्थित शुक्र के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नीले रंग के फूल घर से बाहर जमीन में दबा दें या गंदे नाले में डाल दें। 
सर्वजन हितार्थ उपाय जातक या जातका की जन्मपत्री में किसी भी प्रकार का दोष या कुयोग होने के कारण विवाह में बहुत बाधाएं आती हैं। 
इन बाधाओं के फलस्वरूप न केवल लड़का या लड़की बल्कि समस्त परिवार तनावग्रस्त रहता है। 
मंगल दोष के कारण वैवाहिक जीवन में कलह या तनाव होने की स्थिति में निम्नोक्त क्रिया करें। पति या पत्नी, या फिर दोनों, मंगलवार का व्रत करें और हनुमान जी को लाल बूंदी, सिंदूर व चोला चढ़ाएं। तंदूर की मीठी रोटी दान करें। 
मंगलवार को सात बार एक-एक मुट्ठी रेवड़ियां नदी में प्रवाहित करें। गरीबों को मीठा भोजन दान करें। मंगल व केतु के दुष्प्रभाव से मुक्ति हेतु रक्त दान करें। चांदी का जोड़ विहीन छल्ला धारण करें।

( ज्योतिस – वास्तु -रत्न से सम्बंधित मिले या लिखे )
संपर्क करे … पंडित कौशल पण्डे
शिव शक्ति मंदिर, ब्लाक – सी- 8,
यमुना विहार, दिल्ली -110053
फ़ोन – +919968550003
https://www.astrokaushal.co.in

3 टिप्‍पणियां:

https://www.astrokaushal.com ने कहा…

श्री गणेश विसर्जन क्यों और किस लिए ....?
देवो में भी प्रथम पूज्य श्री गणेश या अन्य देवी देवताओ को किस वेद शास्त्र पुराण में विसर्जन करने का विधान बताया गया क्या इस प्रश्न का उत्तर है किसी ज्ञानी जन के पास .?
हिन्दू धर्म में अनेक प्रथाए और कुरीतिया है जो प्राचीन समय से चली आ रही है जिस देवी देवता की हम लोग घर में पूजा उपासना करते है कुछ समय के बाद उन्हें जल प्रवाह यानि विसर्जन कर देते है जैसे नवरात्री, दीपावली और श्री गणेश उत्सव के समय अगर मूर्ति खंडित भी हो जाती है तो उसे ठीक कराया जा सकता है जैसे इन्शान को चोट लगने पर वो अपना उपचार करा लेता है फिर वो तो ईश्वर की छवि है उन्हें क्यों नहीं सही कराया जा सकता है।

हर साल कितने लोगों की जाने चली जाती है , नदियों और समुद्रों में दुनिया भर के प्रदुषण होते है , ईश्वर की प्रतिमाये नदियों के किनारे पड़ी रहती है समुद्र की लहरे मूर्तियों को किनारे पर ले आती है जिस मूर्ति की हम लोग पूजा आराधना करते है वही मूर्ति पैरों के नीचे लावारिस पड़ी मिलती है ऐसे दृस्य देखकर ईश्वर भी कैसे शुभ परिणाम देंगे ये तो वही जाने मेरे मन में जो आ रहा था लिख दिया बाकी ईश्वर की मर्जी।

https://www.astrokaushal.com ने कहा…

कनागत श्राद्ध 2014 :- कौशल पाण्डेय 09968550003
भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि यानि 8 सितम्बर 2014 से प्रारंभ होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष अमावश्या २३-०९-२०१४ तक की अवधि श्राद्ध पक्ष कहलाती है। भाद्रपद पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक कुल सोलह तिथियां श्राद्ध पक्ष की होती है।

ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि पर गोचर कर रहा होता है। तब पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किया गया दान, तर्पण, पिंड दान करके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर पितृ दोष के प्रभाव को कम किया जा सकता है ।

आइये जानते है क्या होता है पितृ दोष
जन्म कुंडली में जब राहु -केतु सूर्य या चन्द्रमा के साथ खासकर सप्तम ,नवम भाव में या दशम् भाव का स्वामी 6, 8, 12 वें भाव हो साथ ही लग्न व पंचम भाव के स्वामी पाप ग्रहों से युति करे तो ऐसी कुंडली में यह दोष पाया जाता है

इसका परिणाम भी देखने को मिलता है जैसे -------?
अगर आप को अधिक मेहनत के बाद भी सफलता प्राप्त नहीं होती है
बनते कामो में रुकावटे अधिक आती हो
संतान बार बार ख़राब हो
घर में चींटियों का प्रकोप अधिक हो
घर में अकाल मृत्यु या बार-बार दुर्घटनाएं
मानसिक विक्षिप्तता या पागलपन
इस प्रकार से अनेक लक्षण देखने को मिलते है

जब हमारे पितृ यानि पितर संतुष्ट नहीं हैं तो इस तरह की परेशानियां जीवन में आती हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्ष में कई प्रकार के विधान बताए गए हैं जो इस प्रकार से है -

पितृ दोष से बचने का सरल और प्रभावी उपाय बता रहा हूँ आशा है आप सब इसका लाभ उठायेगे

'श्रद्धया यत् क्रियते तत् श्राद्धम्' पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा द्वारा पिंडदान करना ही श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं और वे अपने वंशजों को दीर्घायु, प्रसिद्धि, बल-तेज एवं निरोगता के साथ-साथ सभी प्रकार के पितृ दोष से मुक्ति प्रदान करने का आशीर्वाद देते हैं।

गरुड़ पुराण के अनुसार मृत प्राणी का श्राद्ध उसकी मृत्यु-तिथि के दिन करना चाहिए जिससे मृतात्मा को तृप्ति मिलती है।
इसलिए अपने पूर्वजों का श्राद्ध उनके (स्वर्गवास) की तिथि को ही करें।

श्राद्धकर्त्ता को चाहिए कि वह श्राद्ध के दिन पांच पत्तों पर अलग-अलग भोजन सामग्री रखकर पंचबलि करें-
जैसे - गाय ,कुत्ता ,कौवा ,चींटियाँ के निमित्त अलग अलग पत्ते पर सभी भोजन रख दे इसके बाद सभी भोजन में काला तिल डाले और हाँथ में गंगा जल और काला तिल लेकर ब्राह्मण से पितरों के निमित्त संकल्प कराये और तर्पण करे
इसके उपरांत ब्राह्मण को भोजन करायें तथा यथा शक्ति दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करे

श्राद्ध का फल-पुत्रानामायुस्तथाऽऽरोग् यमैश्वर्यमतुलं तथा। प्रानोति पंचमें कृत्वा श्राद्ध कामांश्च पुष्कलान्॥
पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और मनचाही इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।

आप को यह लेख कैसा लगा कृपया अपना कमेंट और शेयर करना न भूले - कौशल पाण्डेय 09968550003

Rahul ने कहा…

Meri kundali mei mangal air shukr 4(kumbh rashi) bhav mei hai aur rahu 7 (vrash rashi)bhav mei hai mera vivahik jeevan kaisa rahega iska safal upaye bataye