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मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

वैवाहिक जीवन में आने वाले सुख-दुःख और समाधान :-

वैवाहिक जीवन में आने वाले सुख-दुःख और समाधान :- 
यह मनुष्य को परमात्मा का एक वरदान है। कहते हैं, जोड़ियां परमात्मा द्वारा पहले से ही तय होती हैं। पूर्व जन्म में किए गए पाप एवं पुण्य कर्मों के अनुसार ही जीवन साथी मिलता है और उन्हीं के अनुरूप वैवाहिक जीवन दुखमय या सुखमय होता है।
कुंडली में विवाह का विचार मुखयतः सप्तम भाव से ही किया जाता है। इस भाव से विवाह के अलावा वैवाहिक या दाम्पत्य जीवन के सुख-दुख, जीवन साथी अर्थात पति एवं पत्नी, काम (भोग विलास), विवाह से पूर्व एवं पश्चात यौन संबंध, साझेदारी आदि का विचार किया जाता है। 
samsya ka samadhan



यदि कोई भाव, उसका स्वामी तथा उसका कारक पाप ग्रहों के मध्य में स्थित हों, प्रबल पापी ग्रहों से युक्त हों, निर्बल हों, शुभग्रह न उनसे युत हों न उन्हें देखते हों, इन तीनों से नवम, चतुर्थ, अष्टम, पंचम तथा द्वादश स्थानों में पाप ग्रह हों, भाव नवांश, भावेश नवांश तथा भाव कारक नवांश के स्वामी भी शत्रु राशि में, नीच राशि में अस्त अथवा युद्ध में पराजित हों तो उस भाव से संबंधित वस्तुओं की हानि होती है। 

वैवाहिक जीवन के अशुभ योग :- 
यदि सप्तमेश शुभ युक्त न होकर षष्ठ, अष्टम या द्वादश भावस्थ हो और नीच या अस्त हो, तो जातक या जातका के विवाह में बाधा आती है। 
यदि षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश सप्तम भाव में विराजमान हो, उस पर किसी ग्रह की शुभ दृष्टि न हो या किसी ग्रह से उसका शुभ योग न हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा आती है। 
सप्तम भाव में क्रूर ग्रह हो, सप्तमेश पर क्रूर ग्रह की दृष्टि हो तथा द्वादश भाव में भी क्रूर ग्रह हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा आती है।
सप्तमेश व कारक शुक्र बलवान हो, तो जातक को वियोग दुख भोगना पड़ता है।
यदि शुक्र सप्तमेश हो (मेष या वृश्चिक लग्न) और पाप ग्रहों के साथ अथवा उनसे दृष्ट हो, या शुक्र नीच व शत्रु नवांश का या षष्ठांश में हो, तो जातक स्त्री कठोर चित्त वाली, कुमार्गगामिनी और कुलटा होती है। फलतः उसका वैवाहिक जीवन नारकीय हो जाता है।
यदि शनि सप्तमेश हो, पाप ग्रहों क साथ व नीच नवांश में हो अथवा नीच राशिस्थ हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो, तो जीवन साथी के दुष्ट स्वभाव के कारण वैवाहिक जीवन क्लेशमय होता है।
राहु अथवा केतु सप्तम भाव में हो व उसकी क्रूर ग्रहों से युति बनती हो या उस पर पाप दृष्टि हो, तो वैवाहिक जीवन अक्सर तनावपूर्ण रहता है। 
यदि सप्तमेश निर्बल हो और भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तथा कारक शुक्र कमजोर हो, तो जीवन साथी की निम्न सोच के कारण वैवाहिक जीवन क्लेशमय रहता है। 
सूर्य लग्न में व स्वगृही शनि सप्तम भाव में विराजमान हो, तो विवाह में बाधा आती आती है या विवाह विलंब से होता है।
सप्तमेश वक्री हो व शनि की दृष्टि सप्तमेश व सप्तम भाव पर पड़ती हो, तो विवाह में विलंब होता है। सप्तम भाव व सप्तमेश पाप कर्तरी योग में हो, तो विवाह में बाधा आती है। शुक्र शत्रुराशि में स्थित हो और सप्तमेश निर्बल हो, तो विवाह विलंब से होता है। 
शनि सूर्य या चंद्र से युत या दृष्ट हो, लग्न या सप्तम भाव में स्थित हो, सप्तमेश कमजोर हो, तो विवाह में बाधा आती है। शुक्र कर्क या सिंह राशि में स्थित होकर सूर्य और चंद्र के मध्य हो और शनि की दृष्टि शुक्र पर हो, तो विवाह नहीं होता है।
शनि की सूर्य या चंद्र पर दृष्टि हो, शुक्र शनि की राशि या नक्षत्र में में हो और लग्नेश तथा सप्तमेश निर्बल हों, तो विवाह में बाधा निश्चित रूप से आती है। वैवाहिक जीवन में क्लेश सप्तम भाव, सप्तमेश और द्वितीय भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव वैवाहिक जीवन में क्लेश उत्पन्न करता है। 

लग्न, सप्तम भाव, सप्तमेश की कारक शुक्र, राहु, केतु या मंगल से दृष्टि या युति के फलस्वरूप दाम्पत्य जीवन में क्लेश पैदा होता है। 
यदि जातक व जातका का कुंडली मिलान (अष्टकूट) सही न हो, तो दाम्पत्य जीवन में वैचारिक मतभेद रहता है। यदि जातक व जातका की राशियों में षडाष्टक भकूट दोष हो, तो दोनों के जीवन में शत्रुता, विवाद, कलह अक्सर होते रहते हैं। यदि जातक व जातका के मध्य द्विर्द्वादश भकूट दोष हो, तो खर्चे व दोनों परिवारों में वैमनस्यता आती है जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य क्लेश रहता है। यदि पति-पत्नी के ग्रहों में मित्रता न हो, तो दोनों के बीच वैचारिक मतभेद रहता है। जैसे यदि ज्ञान, धर्म, रीति-रिवाज, परंपराओं, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान के कारक गुरु तथा सौंदर्य, भौतिकता और ऐंद्रिय सुख के कारक शुक्र के जातक और जातका की मानसिकता, सोच और जीवन शैली बिल्कुल विपरीत होती है। 

पति-पत्नी के गुणों (अर्थात स्वभाव) में मिलान सही न होने पर आपसी तनाव की संभावना बनती है। अर्थात पति-पत्नी के मध्य अष्टकूट मिलान बहुत महत्वपूर्ण है, जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार कर लेना चाहिए। मंगल दोष भी पति-पत्नी के मध्य तनाव का कारक होता है। 

स्वभाव से गर्म व क्रूर मंगल यदि प्रथम (अपना), द्वितीय (कुटुंब, पत्नी या पति की आयु), चतुर्थ (सुख व मन), सप्तम (पति या पत्नी, जननेंद्रिय और दाम्पत्य), अष्टम (पति या पत्नी का परिवार और आयु) या द्वादश (शय्या सुख, भोगविलास, खर्च का भाव) भाव में स्थित हो या उस पर दृष्टि प्रभाव से क्रूरता या गर्म प्रभाव डाले, तो पति-पत्नी के मध्य मनमुटाव, क्लेश, तनाव आदि की स्थिति पैदा होती है। 

राहु, सूर्य, शनि व द्वादशेश पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य) और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं। दृष्टि या युति संबंध से जितना ही विपरीत या शुभ प्रभाव होगा उसी के अनुरूप वैवाहिक जीवन सुखमय या दुखमय होगा। द्वितीय भाव में सूर्य के सप्तम, सप्तमेश, द्वादश और द्वादशेश पर (राहु पृथकतावादी ग्रह) प्रभाव से दाम्पत्य जीवन में क्लेश की, यहां तक कि तलाक की नौबत आ जाती है।

मानव और जानवर में आहार, निद्रा, भय एवं मैथुन ये चार प्रवृत्तियां समान रूप से विद्यमान रहती हैं। किंतु मैथुन का महत्व आज के युग में अत्यधिक है। हमारे द्रष्टा ऋषियों ने नक्षत्रों का वर्गीकरण लिंग के आधार पर किया है। कन्या हो या वर, जिस नक्षत्र में पैदा होता है, उस नक्षत्र का प्रभाव उस पर पड़ता है। उसका मैथुन स्वभाव तत्संबंधित योनि के अनुरूप होता है। 
कुंडली मेलापन के समय यदि इस बात पर विचार किया जाए, तो निश्चय ही दोनों का शारीरिक संबंध संतोषजनक रहेगा अन्यथा वैवाहिक जीवन में कटुता पैदा होगी। विवाह हेतु मेलापक में योनिकूट का अपना विशेष महत्व है। जिन वर और कन्या के योनिकूट पर ध्यान नहीं दिया जाता, उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है। दूसरी तरफ, जिनकी कुंडली मिलान में योनिकूट पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाता है, उनका वैवाहिक जीवन आनंदमय रहता है। इस यूरेनियम युग में शुक्र अति शक्तिशाली हो रहा है। इससे भविष्य में सेक्स की प्रधानता रहेगी। ऐसे में योनिकूट का महत्व और अधिक बढ़ गया है, जिस पर ध्यान देना ही चाहिए, ताकि तलाक की स्थिति से बचा जा सके। इसी में नवदम्पति का कल्याण है। 

अनुभूत उपाय : यदि कुंडली में वैधव्य योग हो, तो शादी से पहले घट विवाह, अश्वत्थ विवाह, विष्णु प्रतिमा या शालिग्राम विवाह विवाह कराना तथा प्रभु शरण में रहना चाहिए। 

लाल किताब के योग एवं उपाय:- 
शुक्र एवं राहु की किसी भी भाव में युति वैवाहिक जीवन के लिए दुखदायी होती है। 
यह युति पहले भाव 4 या 7 में हो, तो पति-पत्नी में तलाक की नौबत आ जाती है या अकाल मृत्यु की संभावना रहती है।
उपाय यदि ऐसा विवाह हो चुका हो, तो चांदी के गोल वर्तन में काजल या बहते दरिया का पानी और शुद्ध चांदी का टुकड़ा डालकर किसी धर्मस्थान में देना चाहिए। साथ ही एक चांदी के बर्तन में गंगाजल या किसी अन्य बहते दरिया का पानी और चांदी का टुकड़ा डालकर अपने पास रखना चाहिए। 
यह उपाय विवाह से पूर्व या बाद में कर सकते हैं। 
यदि सातवें भाव में राहु हो, तो विवाह के संकल्प के समय बेटी वाला चांदी का एक टुकड़ा बेटी को दे। इससे बेटी के दाम्पत्य जीवन में क्लेश की संभावना कम रहती है। 
यह उपाय लग्न में राहु रहने पर भी कर सकते हैं, क्योंकि इस समय राहु की दृष्टि सातवें भाव पर होती है।
यदि भाव 1 या 7 में राहु अकेला या शुक्र के साथ हो, तो 21 वें वर्ष या इससे पूर्व विवाह होने पर वैवाहिक जीवन दुखमय होता है। अतः उपाय के तौर पर विवाह 21 वर्ष के पश्चात ही कुंडली मिलान करके करें।
सूर्य और बुध के साथ शुक्र की युति किसी भी भाव में होने पर वैवाहिक जीवन में कुछ न कुछ दोष अवश्य ही उत्पन्न होता है, जिससे दाम्पत्य जीवन दुखमय रहता है। 
उपाय तांबे के एक लोटे में साबुत मूंग भरकर विवाह के संकल्प के समय हाथ लगाकर रखना चाहिए और इसे जल में प्रवाहित करना चाहिए। 
यदि यह उपाय विवाह के समय न हो सके, तो जिस वर्ष उक्त तीनों ग्रह लाल किताब के वर्षफलानुसार आठवें भाव में आएं, उस वर्ष कर सकते हैं। 
शुक्र यदि आठवें भाव में हो, तो जातक की पत्नी सखत स्वभाव की होती है, जिससे आपसी सामंजस्य का अभाव रहता है। 
इस योग की स्थिति में विवाह 25 वर्ष की उम्र के बाद ही करना चाहिए। इसके पहले विवाह करने पर पत्नी के स्वास्थ्य के साथ-साथ गृहस्थ सुख पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। 
उपाय आठवें भाव में स्थित शुक्र के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नीले रंग के फूल घर से बाहर जमीन में दबा दें या गंदे नाले में डाल दें। 
सर्वजन हितार्थ उपाय जातक या जातका की जन्मपत्री में किसी भी प्रकार का दोष या कुयोग होने के कारण विवाह में बहुत बाधाएं आती हैं। 
इन बाधाओं के फलस्वरूप न केवल लड़का या लड़की बल्कि समस्त परिवार तनावग्रस्त रहता है। 
मंगल दोष के कारण वैवाहिक जीवन में कलह या तनाव होने की स्थिति में निम्नोक्त क्रिया करें। पति या पत्नी, या फिर दोनों, मंगलवार का व्रत करें और हनुमान जी को लाल बूंदी, सिंदूर व चोला चढ़ाएं। तंदूर की मीठी रोटी दान करें। 
मंगलवार को सात बार एक-एक मुट्ठी रेवड़ियां नदी में प्रवाहित करें। गरीबों को मीठा भोजन दान करें। मंगल व केतु के दुष्प्रभाव से मुक्ति हेतु रक्त दान करें। चांदी का जोड़ विहीन छल्ला धारण करें।

( ज्योतिस – वास्तु -रत्न से सम्बंधित मिले या लिखे )
संपर्क करे … पंडित कौशल पण्डे
शिव शक्ति मंदिर, ब्लाक – सी- 8,
यमुना विहार, दिल्ली -110053
फ़ोन – +919968550003
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भारतीय नववर्ष विक्रम संवत की हार्दिक शुभकामनाएं

श्री राम हर्षण शांति कुञ्ज " की तरफ से आपको और आपके परिवार को भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2079 की हार्दिक शुभकामनाएं . . . .

" माँ दुर्गा " आपको शांति , शक्ति , संपत्ति , संयम , सादगी ,सफलता ,समृद्धि , सम्मान . . स्नेह और स्वास्थ्य जीवन प्रदान करे . 
भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदानुसार 2 अप्रैल 2079 से प्रारम्भ होता है क्योंकि इस तिथि से ही ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का निर्माण प्रारम्भ किया।साथ ही आज के दिन से ही नवरात्रों का महापर्व आरम्भ होता है,

‘‘चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति।।’’

भारतीय ज्योतिष के अनुसार विक्रम संवत 2079 का राजा 
शनि  व मंत्री गुरु होगा। नव संवत्सर का शुभारंभ जिस वार (दिवस) को होता है, उस वर्ष का राजा उसी वार के अधिपत्य वाला ग्रह होता है।

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ.... . .पंडित कौशल पाण्डेय 


मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

जन्मकुंडली में मंगल ग्रह का उपाय :- कौशल पाण्डेय

जन्मकुंडली में मंगल ग्रह का उपाय :- कौशल पाण्डेय+919968550003


लाल किताब के अनुसार मंगल एक पापी एवं क्रूर ग्रह है। इसमें मंगल की दो रूप में व्याख्या की गई है - नेक और बद अर्थात शुभ और अशुभ। शुभ मंगल का देवता साक्षात श्रीराम भक्त हनुमानजी को माना गया
 है जिसका हर ज्योतिष शास्त्र में उल्लेख है। मंगल अशुभ (बद) के देवता भूत-प्रेत माने गए हैं। किंतु लाल किताब में कार्तिकेय को इस ग्रह का स्वामी माना गया है जो महादेव के पुत्र एवं भगवान श्री गणेश के सहोदर के रूप मे जाने जाते हैं।

नव ग्रहों में मंगल को सेनापति की संज्ञा दी गयी है। शारीरिक तौर पर मंगल से प्रभावित जातक स्वस्थ, और मध्य लंबे कद के होते हैं। कमर पतली छाती चैड़ी, बाल घुंघराले, आंखे लाल होती हैं। उनके चेहरे पर तेज होता है। मंगल मेष एवं वृश्चिक राशि का स्वामी है। मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्रों का स्वामित्व भी मंगल को ही प्राप्त है। मंगल तृतीय एवं षष्ठ भाव का कारक है। मिथुन लग्न और कन्या लग्न की कुंडली में यह विशेष अकारक ग्रह बन जाता है। मंगल मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीच का होता है। लग्न कुंडली में मंगल जिस भाव में स्थिति होता है उस भाव से संबंधित कार्यों को अपनी प्रकृति के अनुसार सुदृढ़ करता है।

शुभ मंगल मंगलकारी और अशुभ मंगल अमंगलकारी कार्य करता है। मंगल शक्ति, साहस, सेनाध्यक्ष, युद्ध, दुर्घटना, क्रोध, षड्यंत्र, बीमारियों, शत्रु, विपक्ष, विवाद, संपŸिा, छोटे भाई नेता, पुलिस, डाक्टर, वैज्ञानिक, मेकैनिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्राॅनिक कार्यों का कारक ग्रह है। मंगल तांबे, खनिज पदार्थों, कच्ची धातु, सोने, मूंगे, हथियार, भूमि आदि का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल शिराओं, धमनियों टूट-फूट, अस्थि-मज्जा के रोग, रक्त स्राव, गर्भपात, मासिक धर्म मंे अनियमितता, सूजाक, गठिया, और जलना आदि रोगों का प्रतीक है। अशुभ मंगल अमंगलकारी हो जाता है जिसके प्रभाव से प्रभावित जातक क्रोधी, आतंकवादी, दुराचारी, षड्यंत्रकारी और विद्रोही होता है। मंगल की क्रूरता के कारण ही वर-वधू की कुंडली में मंगली मिलान आवश्यक होता है। दाम्पत्य जीवन सुखमय हो इसके लिए वर-वधू दोनों की कंुडली में मंगल की स्थिति को देख कर मिलान किया जाता है।


लाल किताब में अशुभ अर्थात बद मंगल को वीरभद्र की संज्ञा दी गई है और माना गया है कि मंगल जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा और वह स्वभाव से जिद्दी एवं उग्र हो सकता है। चतुर्थ भाव से सुख, संपत्ति, भूमि, भवन, वाहन एवं उपभोग में आने वाली भौतिक सामग्री का आकलन किया जाता है। चतुर्थ भाव में मंगल हो अथवा उस पर उसकी दृष्टि पड़े, तो इन फलों में कमी आएगी। सप्तम भाव से जीवनसाथी और रतिसुख की विवेचना की जाती है

यदि मंगल सप्तम में हो या उस पर क्रूर दृष्टि डाल रहा हो, तो पारिवारिक व वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहेगा, विधुर-विधवा योग भी घटित हो सकते हैं।
अष्टम भाव से आयु तथा जीवन में आने वाली बाधाओं का विचार किया जाता है। इस भाव से मंगल दोष बने अथवा इस पर मंगल की दृष्टि पड़े, तो अनेकानेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है और अनिष्ट की संभावनाएं तथा जीवन साथी की मृत्यु की भी आशंकाएं रहती हैं।
द्वादश भाव से शय्या सुख, व्यय, हानि, शासन दंड, कारावास, बदनामी आदि का विचार किया जाता है
यदि मंगल इस भाव से संबंध स्थापित करता हो या इसमें स्थित हो, तो अनावश्यक व्यय, मन में चिंता, परेशानियां, नींद का अभाव आदि होते हैं। इस प्रकार मंगल की अलग-अलग भावों में स्थिति के फल अलग-अलग फल होते हंै किंतु यह सर्वमान्य सत्य है कि वैवाहिक सुख ऊपर वर्णित भावों से पूर्णतया संबद्ध है। वैवाहिक सुख में शरीर, मन, रति सुख एवं काम क्रीड़ा की अपनी विशेष महत्ता है। मंगल दोष वैवाहिक जीवन में सर्वाधिक बुरा प्रभाव डालता है जबकि मंगल, शनि, राहु, केतु एवं सूर्य से बनने वाले कुयोग कम प्रभावशाली होते हैं।

लाल किताब में भी यह माना गया है कि मंगल दोष अपना सर्वाध् िाक बुरा प्रभाव सप्तम व अष्टम भावों में दिखाता है जबकि व्यय भाव में इसका प्रभाव कम होता है। मूलतः यह माना जाता है कि मंगल दोष कुटुंब सुख में बाधक होता है क्योंकि अग्नि तत्व प्रधान होने के कारण मंगल साध् ाारण ग्रहों से प्रभावित नहीं हो पाता। फलतः जातक में क्रोध, चिड़चिड़ापन, हठधमिर्त ा, कामाध्ं ाता, वचै ारिक मतभदे आदि बढ़ जाते हंै, जिससे पारिवारिक जीवन दुखद हो जाता है। लाल किताब में बताए गए दोष निवारण के उपाय एवं बद (अशुभ) ग्रहों को निष्क्रिय करने अथवा शुभत्व प्रदान करने के सुझाव अत्यंत प्रभावशाली हैं जिन्हें एक सामान्य इन्सान, आर्थिक रूप से विपन्न व्यक्ति भी, आसानी से कर के लाभान्वित हो सकता है।

मंगल दोष निवारणार्थ लाल किताब में सुझाए गए उपाय भावों एवं लग्न के अनुसार अलग-अलग हैं किंतु मंगल दोष के सामान्य उपाय सभी प्रकार की लग्न कुंडलियों के विविध भावगत मंगल दोष के लिए सर्वमान्य हैं, जिन्हें अवश्य करना चाहिए। जैसे मंगल की धातु तांबा तथा रत्न मूंगा है, शहद एवं मिठाई मंगल को विशेष प्रिय हंै।

इनकी शांति, पूजा, दानादि से लग्न को सबल, सक्रिय किया जा सकता है। मंगलवार का व्रत, हनुमानजी की आराधना, विविध पाठ, शहद, सिंदूर, मसूर की दाल का दान या उनका बहते पानी में प्रवाह, मृगचर्म पर शयन, शुद्ध चांदी का प्रयोग, भाई की सेवा आदि प्रमुख उपाय हैं। पवनसुत हनुमान जी की आराधना को लाल किताब में श्रेष्ठ, सरल एवं सस्ते उपायों की श्रेणी में रखा गया है। वहीं भगवान कार्तिकेय तथा धरती की पूजा का भी विधान है। स्वयं मंगलदेव की आराधना और उनकी भगिनी यमुना की पूजा से भी दोष का शमन होता है। सूर्य के आ. ज्ञाकारी पुत्र होने के कारण सूर्य की आराधना से भी मंगल प्रसन्न होता है। मंगल दोष दूर करने के लग्नानुरूप तथा भावानुरूप सुझाए गए लाल किताब के विशिष्ट उपाय अत्यंत कारगर हैं, जिन्हें अपनाकर आम जन भी मंगल के अशुभत्व को शुभत्व में बदल सकते हैं।

इन उपायों से कोई हानि नहीं होती। मंगल लग्न में होकर अशुभ हो, मंगल दोष बना रहा हो, तो जातक मुफ्त में दान ग्रहण न करे और कोई वस्तु बिना मूल्य चुकाए स्वीकार न करें।
हाथी दांत की बनी वस्तुएं घर में या अपने पास न रखें। चतुर्थ भावस्थ मंगल यदि अशुभ हो, तो शहद, शक्कर और चीनी का व्यापार कदापि न करें।
बंदरों, साध् ाुओं और अपनी मां की सेवा करें। बंदरों को गुड़ और चना खिलाएं। अष्टमस्थ मंगल के भी यही उपाय हैं।
इसके अतिरिक्त इस स्थिति के दोष से बचाव के लिए विधवाओं का आशीर्वाद प्राप्त करें तथा अपने पुत्र के जन्मदिन पर नमक बांटें।
सप्तम (जाया) भाव में किसी भी राशि का मंगल जब अशुभ हो, तो जातक साली, मौसी, बहन, बेटी और बुआ को मिठाइयां बांटें।
झूठ और झूठी गवाही से बचें। पत्नी को चांदी की चूड़ी लाल रंग करके पहनाएं। व्यय भाव में जब मंगल अशुभता लिए हुए हो, तो जातक नित्य सुबह खाली पेट शहद का सेवन, मंदिर में बांटें और अन्य लोगों को खिलाएं।
इस प्रकार उक्त भावों में मंगल की स्थिति से उत्पन्न होने वाले मंगल दोष के निवारण का उल्लेख लाल किताब में किया गया है। भाव तथा लग्न स्थिति के अनुसार उपाय अलग-अलग हैं जिसकी संक्षेप में यहां व्याख्या कर पाना संभव नहीं है। किंतु मंगल दोष से बचने का सर्वाध् िाक सरल तरीका लाल किताब में बताया गया है।
लाल किताब की इसीलिए ज्योतिष में अपनी अलग छवि और स्थान है। वहीं इसके सुझावों में मानवीय रिश्तों को भी कम महत्व नहीं दिया गया है। इसमें कहा गया है कि मां, मौसी, बहन, बुआ, साली, बेटी, लड़कियों तथा विधवाओं और भाई की सेवा से मंगल की अशुभता में कमी आती है। ताऊ अर्थात पिता के बड़े भाई की सेवा को भी उपायों में शामिल किया गया है।

भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान मंगल के प्रिय आराध्य हैं और हनुमान जी सात्विकों तथा ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों के दुखों को दूर करते हैं। चूंकि दाम्पत्य सुख पाने के लिए पति-पत्नी का मिलन आवश्यक है अतः ब्रह्मचर्य का पालन संभव नहीं है। ऐसे में एक दूसरे के प्रति निष्ठा आवश्यक होती है।

दान का समय: सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच कभी भी। मंगल के मंत्रों की जप संख्या: दस हजार ।
मंगल ग्रह के बीज मंत्र: ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः। , ॐ अं अंगारकाय नमः
मंगल गायत्री मंत्र: ॐ अंगारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्।
मंगल की शांति के लिए मंगलवार का व्रत, हनुमान मंदिर में दीपदान, बजरंग बाण का पाठ, सुंदरकांड का पाठ अथवा हनुमत लांगूल स्तोत्र का पाठ एवं ग्यारह प्रदोष के दिन रुद्राभिषेक करना चाहिए। मंगल और रुद्राक्ष: मंगल ग्रह जनित गर्भ दोष, गर्भ संबंधी पीड़ा एवं रोगों से मुक्ति के लिए अठारहमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

जन्मकुंडली में मंगल ग्रह का उपाय :- कौशल पाण्डेय

( ज्योतिस – वास्तु -रत्न से सम्बंधित मिले या लिखे )
संपर्क करे … पंडित कौशल पण्डे
शिव शक्ति मंदिर, ब्लाक – सी- 8,
यमुना विहार, दिल्ली -110053
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शनिवार, 26 नवंबर 2011

लाल किताब के उपाय कैसे करे .. कौशल पाण्डेय 09968550003

हम सभी जानते है की कुंडली कुल बारह भाव होते है सभी भावे के अलग-अलग स्वामी होते है … 
आप अपनी कुंडली में खुद ही देर्ख सकते है की किस भाव में कौन सा गृह ख़राब है , और उसका उपाय कैसे करें. जहाँतक हो सके उपाय किसी विद्वान पंडित से ही कुंडली दिखाकर कराएँ अन्यथा लाभ के बजे हनी भी हो सकती है .-- 

 लाल किताब के अनुसार जिस ग्रह से संबंधित वस्‍तुओं को 
- प्रथम भाव में पहुंचाना हो उसे गले में पहनिए 
- दूसरे भाव में पहुंचाने के लिए मंदिर में रखिए 
- तीसरे भाव में पहुंचाने के लिए संबंधित वस्‍तु को हाथ में धारण करें 
- चौथे भाव में पहुंचाने के लिए पानी में बहाएं 
- पांचवे भाव के लिए स्‍कूल में पहुंचाएं,
 - छठे भाव में पहुंचाने के लिए कुएं में डालें 
- सातवें भाव के लिए धरती में दबाएं 
- आठवें भाव के लिए श्‍मशान में दबाएं 
- नौंवे भाव के लिए मंदिर में दें 
- दसवें भाव के लिए पिता या सरकारी भवन को दें 
- ग्‍यारहवें भाव का उपाय नहीं और बारहवें भाव के लिए ग्रह से संबंधित चीजें छत पर रखें। 

प्रत्येक जातक की कुंडली में अशुभ ग्रहों की स्थिति अलग-अलग रहती है, परंतु कुछ कर्मों के आधार पर भी ग्रह आपको अशुभ फल देते हैं। प्रत्येक जातक की कुंडली में अशुभ ग्रहों की स्थिति अलग-अलग रहती है, परंतु कुछ कर्मों के आधार पर भी ग्रह आपको अशुभ फल देते हैं। 

कृपया कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर ही उपाय करे , १ समय में १ ही उपाय करे और कम से कम ४३ दिन तक उपाय करने चाहिए 
 1. सूर्य : बहते पानी में गुड़ बहाएँ। सूर्य को जल दे, पिता की सेवा करे या गेहूँ और तांबे का बर्तन दान करें., 
2. चंद्र : किसी मंदिर में कुछ दिन कच्चा दूध और चावल रखें या खीर-बर्फी का दान करें, या माता की सेवा करे, या दूध या पानी से भरा बर्तन रात को सिरहाने रखें. सुबह उस दुध या पानी से किसी कांटेदार पेड़ की जड़ में डाले या चन्द्र के लिए चावल, दुध एवं चान्दी के वस्तुएं दान करें. 

3. मंगल : बहते पानी में तिल और गुड़ से बनी रेवाडि़यां प्रवाहित करे.या बरगद के वृक्ष की जड़ में मीठा कच्चा दूध 43 दिन लगातार डालें। उस दूध से भिगी मिट्टी का तिलक लगाएँ। या ८ मंगलवार को बंदरो को भुना हुआ गुड और चने खिलाये , या बड़े भाई बहन के सेवा करे, मंगल के लिए साबुत, मसूर की दाल दान करें 

4. बुध : ताँबे के पैसे में सूराख करके बहते पानी में बहाएँ। फिटकरी से दन्त साफ करे, अपना आचरण ठीक रखे ,बुध के लिए साबुत मूंग का दान करें., माँ दुर्गा की आराधना करें .

 5. बृहस्पति : केसर का तिलक रोजाना लगाएँ या कुछ मात्रा में केसर खाएँ और नाभि या जीभ पर लगाएं या बृ्हस्पति के लिए चने की दाल या पिली वस्तु दान करें. 

6. शुक्र : गाय की सेवा करें और घर तथा शरीर को साफ-सुथरा रखें, या काली गाय को हरा चारा डाले .शुक्र के लिए दही, घी, कपूर आदि का दान करें. 

7. शनि : बहते पानी में रोजाना नारियल बहाएँ। शनि के दिन पीपल पर तेल का दिया जलाये ,या किसी बर्तन में तेल लेकर उसमे अपना क्षाया देखें और बर्तन तेल के साथ दान करे. क्योंकि शनि देव तेल के दान से अधिक प्रसन्ना होते है, या हनुमान जी की पूजा करे और बजरंग बाण का पथ करे, शनि के लिए काले साबुत उड़द एवं लोहे की वस्तु का दान करें. 

8. राहु : जौ या मूली या काली सरसों का दान करें या अपने सिरहाने रख कर अगले दिन बहते हुए पानी में बहाए , 

9. केतु : मिट्टी के बने तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ या सवा किलो आटे को भुनकर उसमे गुड का चुरा मिला दे और ४३ दिन तक लगातार चींटियों को डाले, या कला सफ़ेद कम्बल कोढियों को दान करें या आर्थिक नुकासन से बचने के लिए रोज कौओं को रोटी खिलाएं. या काला तिल दान करे, लती है.... 

कर्मो के अनुसार अच्छे - बुरे फल मिलते है इन उपायों को करने से जीवन में खुशहाली आती है .. कौन नहीं चाहता की उसके जीवन में खुशहाली रहे और सुख-शांति बनी रहे पर हर व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं होता। 

जीवन में सुख और शांति का बना रहना काफी मुश्किल होता है। जीवन में अगर सुख है तो दुःख भी जरुर आएगा फिर भी उपरोक्त उपाय करने से आप जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। 
१-सुबह घर से खाना खाने से पहले नियमित रूप से गाय की रोटी निकले । 
2- एक स्टील के पात्र में गंगा जल लेकर उसमें कुंकुम डालकर सूर्य भगवन को जल दे । 
३- एक स्टील के पात्र में गंगा जल और काला तिल मिलाकर पीपल के जड़ में पर नियमित रूप से चढ़ाएं।
4- सुबह घर से निकलने से पहले घर के सभी सदस्य अपने माथे पर चन्दन तिलक लगाएं। 
५- मछलियों की आटे की गोली बनाकर खिलाएं। 
6- पार्क में या किसी पेड़ की निचे चींटियों को भुना हुआ आटा शकर का बूरा मिलाकर खिलाएं। 
7- रोज अपने माथे पर तिलक लगाये (गंगा जल, रोली ,केशर ,हल्दी को मिलाकर तिलक बनाये )
८- घर में तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल चढ़ाएं तथा घी का दीपक जलाये । 
९- घर में शमी का वृक्ष लगाने से शुख शांति मिलती है । इन उपायों को पूर्ण श्रद्धा के साथ लगातार करने से जीवन में खुशहाली आने लगती है। 

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कुन्जिका स्तोत्रं

कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने से संपूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का फल मिलता है .. यह महामंत्र देवताओं को भी दुर्लभ है , इस मंत्र का नित्य पाठ करने से माँ भगवती जगदम्बा की कृपा रहती है .. कौशल पाण्डेय कुन्जिका स्तोत्रं :- शिव उवाच शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ।येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्‌॥1॥ न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌। न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्‌॥2॥ कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌। अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥ गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌। पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥4॥ अथ महा मंत्र :-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल , प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
॥ इति मंत्रः॥
 नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥ 
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥ 
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥ 
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥ 
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥ 
धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। 
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥ 
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥ 
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥ 
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥ 
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥ इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
 अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥ यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्‌।
 न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥ ।
 इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ।

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बुधवार, 23 नवंबर 2011

वैदिक उपाय जो आप के व्यस्त और नीरस जीवन में खुशाली ला देगे…

कुंडली में अगर निम्न गृह अशुभ है तो निम्न बीमारी देंगे अपनी महादशा या अंतर दशा में 

सूर्य : मुँह में बार-बार थूक इकट्ठा होना, झाग निकलना, धड़कन का अनियंत्रित होना, शारीरिक कमजोरी और रक्त चाप। 

चंद्र : दिल और आँख की कमजोरी। .

मंगल : रक्त और पेट संबंधी बीमारी, नासूर, जिगर, पित्त आमाशय, भगंदर और फोड़े होना। 

बुध : चेचक, नाड़ियों की कमजोरी, जीभ और दाँत का रोग। 

बृहस्पति : पेट की गैस और फेफड़े की बीमारियाँ। 

शुक्र : त्वचा, दाद, खुजली का रोग। 

शनि : नेत्र रोग और खाँसी की बीमारी। 

राहु : बुखार, दिमागी की खराबियाँ, अचानक चोट, दुर्घटना आदि। 

केतु : रीढ़, जोड़ों का दर्द, शुगर, कान, स्वप्न दोष, हार्निया, गुप्तांग संबंधी रोग आदि।

अशुभ ग्रहों का उपाय किस प्रकार से करे… 
1. सूर्य : बहते पानी में गुड़ बहाएँ। सूर्य को जल दे, पिता की सेवा करे या गेहूँ और तांबे का बर्तन दान करें.,
2. चंद्र : किसी मंदिर में कुछ दिन कच्चा दूध और चावल रखें या खीर-बर्फी का दान करें, या माता की सेवा करे, या दूध या पानी से भरा बर्तन रात को सिरहाने रखें. सुबह उस दुध या पानी से किसी कांटेदार पेड़ की जड़ में डाले या चन्द्र के लिए चावल, दुध एवं चान्दी के वस्तुएं दान करें. 

3. मंगल : बहते पानी में तिल और गुड़ से बनी रेवाडि़यां प्रवाहित करे.या बरगद के वृक्ष की जड़ में मीठा कच्चा दूध 43 दिन लगातार डालें। उस दूध से भिगी मिट्टी का तिलक लगाएँ। या ८ मंगलवार को बंदरो को भुना हुआ गुड और चने खिलाये , या बड़े भाई बहन के सेवा करे, मंगल के लिए साबुत, मसूर की दाल दान करें 

4. बुध : ताँबे के पैसे में सूराख करके बहते पानी में बहाएँ। फिटकरी से दन्त साफ करे, अपना आचरण ठीक रखे ,बुध के लिए साबुत मूंग का दान करें., माँ दुर्गा की आराधना करें . 

5. बृहस्पति : केसर का तिलक रोजाना लगाएँ या कुछ मात्रा में केसर खाएँ और नाभि या जीभ पर लगाएं या बृ्हस्पति के लिए चने की दाल या पिली वस्तु दान करें. 

6. शुक्र : गाय की सेवा करें और घर तथा शरीर को साफ-सुथरा रखें, या काली गाय को हरा चारा डाले .शुक्र के लिए दही, घी, कपूर आदि का दान करें. 

7. शनि : बहते पानी में रोजाना नारियल बहाएँ। शनि के दिन पीपल पर तेल का दिया जलाये ,या किसी बर्तन में तेल लेकर उसमे अपना क्षाया देखें और बर्तन तेल के साथ दान करे. क्योंकि शनि देव तेल के दान से अधिक प्रसन्ना होते है, या हनुमान जी की पूजा करे और बजरंग बाण का पथ करे, शनि के लिए काले साबुत उड़द एवं लोहे की वस्तु का दान करें. 

8. राहु : जौ या मूली या काली सरसों का दान करें या अपने सिरहाने रख कर अगले दिन बहते हुए पानी में बहाए , 

9. केतु : मिट्टी के बने तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ या सवा किलो आटे को भुनकर उसमे गुड का चुरा मिला दे और ४३ दिन तक लगातार चींटियों को डाले, या कला सफ़ेद कम्बल कोढियों को दान करें या आर्थिक नुकासन से बचने के लिए रोज कौओं को रोटी खिलाएं. या काला तिल दान करे, 

अपना कर्म ठीक रखे तभी भाग्य आप का साथ देगा और कर्म कैसे ठीक होगा इसके लिए आप .. 

मन्दिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए जाएं., माता-पिता और गुरु जानो का सम्मान करे , अपने धर्मं का पालन करे, भाई बन्धुओं से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखें., 

पितरो का श्राद्ध करें. या प्रत्येक अमावस को पितरो के निमित्त मंदिर में दान करे, गाय और कुत्ता पालें, यदि किसी कारणवश कुत्ता मर जाए तो दोबारा कुत्ता पालें. अगर घर में ना पाल सके तो बाहर ही उसकी सेवा करे, 

यदि सन्तान बाधा हो तो कुत्तों को रोटी खिलाने से घर में बड़ो के आशीर्वाद लेने से और उनकी सेवा करने से सन्तान सुख की प्राप्ति होगी . 

गौ ग्रास. रोज भोजन करते समय परोसी गयी थाली में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्ते को एवं एक हिस्सा कौए को खिलाएं आप के घर में हमेसा बरक्कत रहेगी, 

एक समय में केवल एक ही उपाय करें.उपाय कम से कम 40 दिन और अधिक से अधिक 43 दिनो तक करें. यदि किसी करणवश नागा हो तो फिर से प्रारम्भ करें.,

 यदि कोइ उपाय नहीं कर सकता तो खून का रिश्तेदार ( भाई, पिता, पुत्र इत्यादि) भी कर सकता है. 

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  • वैदिक विधियों द्वारा समस्याओं का समाधान...
  • जन्म कुंडली के द्वारा , विद्या, कारोबार, विवाह, संतान सुख, विदेश-यात्रा, लाभ-हानि, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , कर्ज से मुक्ति, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक ,पारिवारिक विषयों पर वादिक उपायों के द्वारा समाधान प्राप्त करें,
  • आप हमें अपना जन्म की तारीख , समय और जन्म स्थान , लिख भेंजिये, 
  • ज्योतिष कर्म प्रधान है कई लोग कहते है की मैंने बहुत से पूजा पाठ किये है , रोज कई घंटे भगवन के भजन और सत्संग में बीत जाता है, बहुत से तीर्थ स्थलों के दर्शन किये है लेकिन मन में शांति नहीं है.. इसका कारन क्या है ---

    आज अगर इन्शान चाहे तो क्या नहीं कर सकता, इश्वर ने हमें मानव तन जो प्रदान किया है, लेकिन हमलोग सिर्फ काम-वाशना और धन कमाने में ही अपना सम्पूर्ण जीवन नस्त कर दे रहे है

    भारतीय ज्योतिष वास्तु, तंत्र-मंत्र यन्त्र आदि के विषयों में अगर आप रूचि रखते है तो जरुर अपना ज्ञान सभी लोगों के सामने रखे, और मानव कल्याण करने में बिना किसी जाती धर्मं के बिना निःस्वार्थ भाव से हमसे जुड़े....


    कौशल पाण्डेय..
    Shri Ram Harshan Shanti Kunj
    SHIV SHAKTI MANDIR , C-10
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  • आज अगर इन्शान चाहे तो क्या नहीं कर सकता, इश्वर ने हमें मानव तन जो प्रदान किया है, लेकिन हमलोग सिर्फ काम-वाशना और धन कमाने में ही अपना सम्पूर्ण जीवन नस्त कर दे रहे है

  • भारतीय ज्योतिष वास्तु, तंत्र-मंत्र यन्त्र आदि के विषयों में अगर आप रूचि रखते है तो जरुर अपना ज्ञान सभी लोगों के सामने रखे, और मानव कल्याण करने में बिना किसी जाती धर्मं के बिना निःस्वार्थ भाव से हमसे जुड़े....

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सोमवार, 21 नवंबर 2011

वैदिक उपाय (भारतीय ज्योतिष और लाल किताब के सरल उपाय )


सभी राशियों के लिये शनि देव को शांत और प्रसन्ना करने के लिए के ११ उपाय इस प्रकार से है आशा करता हूँ की जिस भाई-बहन की कुंडली में शनिदेव के साढ़े सत्ती या शनि महादशा चल रही हो उनके लिए कल्याणकारी होगी ,उपाय इस प्रकार से है —
ॐ शनैश्वराय नमः॥,ॐ शनैश्वराय नमः॥,ॐ शनैश्वराय नमः॥
१- शनिवार को हनुमान मन्दिर में पूजा उपासना कर तथा प्रसाद चढायें.
शनि देव को शांत करने के लिए वेदों में प्रायः हनुमान जी की पूजा बताए गई है , अगर इन्शान हनुमान जी की पूजा करे तो शनि अपने आप ही शांत रहता है
२-शनिवार को सरसों के तेल में अपनी छाया देख कर दान करना चाहिए
३ -मध्यमा अंगूली में काले घोडे की नाल का छल्ला धारण करें.
४- घर में पूजा स्थान में पारद शिवलिंग रखें. तथा उसके सामने प्रतिदिन महामृ्त्त्युंजय मंत्र का जाप कर्रें.
५- स्वास्तिक अथवा अन्य मांगलिक चिन्ह घर के मुख्य द्वार पर लगायें.
६- शनि स्तोत्र का प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक जाप करें.
७- काले घोडे की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा अंगुळी में धारण करें.
८ – प्रतिदिन शनि महा मंत्र का जाप करने से घर में सुख शांति रहती है और शनि देव सभी मनोरथ को पूरा करते है मंगलमय वातावरण बना रहता है ,
९- शनिवार के दिन नारियल अथवा बादाम को जल प्रवाह करें.
१०- शनिवार को साबुत उडद किसी भिखारी को दान करें.या पक्षियों को ( कौए ) खाने के लिए डाले ,
११- पीपल के पेड पर जल चढायें.या हनुमान जी को मंगल और शनिवार के दिन सिंदूर चढ़ाएं
दशरथकृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण् निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्रय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥
नम: पुष्कलगात्रय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुख्रर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्चसि ्विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता:सर्वे नाशंयान्ति समूलत:॥9॥
शनि मंत्र
कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम: l
सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत: l
नमस्ते कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते l
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकायच l
नमस्ते मंदसंज्ञाय नमस्ते सौरयेविभो l
नमस्ते यमसंज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते l
प्रसादं कुरु देवेश: दीनस्य प्रणतस्यच ल
शनि स्त्रोत्र …
निलान्जनम समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
सूर्य पुत्रो दीर्घ देहो विशालाक्षः शिवप्रियः।
मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनिः ॥
कोणस्थ पिंगलो ब्रभू कृष्णो रौद्रो दंतको यमः।
सौरिः शनैश्वरो मन्दः पिप्पालोद्तः संस्तुतः॥
एतानि दशनामानी प्रातः रुत्थाय य पठेतः।
शनैश्वर कृता पिडा न कदाचित भविष्यती॥
---shani dev ..
आप अपनी कुंडली दिखाकर भी शनिदेव की दशा महादश या शनि दोस के बारे में जान सकते है.

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संतान प्राप्ति के सरल उपाय ( Putra Prapti Ke Saral Upay)

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#Santanpraptikeupay

प्रायः देखने में आया है की किसी को संतान तो पैदा हुए, किसी को संतान होती ही नहीं है , कोई  पुत्र चाहता है तो कोई  कन्या … 
हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है। 

मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…

कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए।

ये उपाय प्राचीन ऋषि महर्षियों ने मानव कल्याण के लिए बताये है,जिन्हें मै आप लोंगो के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ






किसी भी संका समाधान के लिए आप मुझसे संपर्क कर कर सकते है… कौशल पाण्डेय अधिक जानकारी के लिए  आप मुझे अपना जन्म की तारीख, समय और जन्म स्थान मेरे email  पर mail kare astrokaushal@gmail.com 
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